अमोल मालुसरे -सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 17 (4) में “विहीत” किये गये अनूसार राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों को कदाचार का दोषी कब समझा जाता है?


उत्तर- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 धारा – 17. (4) के अनुसार

(4) यदि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या कोई राज्य सूचना आयुक्त, किसी प्रकार राज्य  सरकार द्वारा या उसकी ओर से की गई किसी संविदा या करार से संबद्ध या उसमें हितबद्ध है या किसी निगमित कंपनी के किसी सदस्य के रूप में से अन्यथा और उसके अन्य सदस्यों के साथ सामान्यत: उसके लाभ में या उससे प्रोदभूत होने वाले किसी फायदे या परिलब्धियों में हिस्सा लेता है तो वह उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए, कदाचार का दोषी समझा जाएगा।

 

कदाचार हेतु टिप्पणी-

इस धारा के प्रयोजनार्थ निम्नांकित को “कदाचार” माना गया है-

(क)  भारत सरकार द्वारा या उसकी ओर से की गई किसी संविदा में हितबद्ध हो जाना;

(ख)  किसी निगमित कम्पनी के सदस्य से अन्यथा किसी रूप में और उसके अन्य सदस्यों के साथ संयुक्त रुप से लाभ में हिस्सा प्राप्त करना; आदि।

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